बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
अथवा
क्या साधन नैतिक निर्णय का विषय की व्याख्या कीजिये? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नैतिक निर्णय में साध्य एवं साधन के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
नैतिक निर्णय
नैतिक निर्णयों के अन्तर्गत ऐच्छिक कर्म स्वतन्त्रता तथा स्वेच्छा से किए जाते हैं। ऐच्छिक कर्म स्वतन्त्र, स्वेच्छिक तथा संकल्पजन्य होते हैं। जो कर्म शुद्ध तथा अनैच्छिक होते हैं, उन्हें नैतिक निर्णयों के लिए स्वीकार नहीं किया जाता। ऐच्छिक कर्म के आन्तरिक पक्ष के अन्तर्गत व्यक्ति की इच्छाएँ, भावनाएँ लक्ष्य का विचार, साधन का विचार, चुनाव तथा संकल्प आदि को सम्मिलित किया जाता है। ऐच्छिक कर्म से जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं वे प्रत्याशित भी होते हैं तथा अप्रत्याशित भी।
नैतिक निर्णय में निम्नलिखित विषयों का समावेश किया जाता है -
नैतिक निर्णय में सुखवाद के समर्थक विद्वानों ने ऐच्छिक कर्म के परिणाम को ही नैतिक निर्णय का विषय माना है। इसके अनुसार, किसी कर्म की अच्छाई या बुराई कर्म पर निर्भर करती है।
मिल के अनुसार, "हेतु को कार्य की नैतिकता से कोई सरोकार नहीं होता।'
"The motive has nothing to do with the morality of the action." इसके अतिरिक्त अन्य तथ्य निम्नलिखित हैं-
1. कर्म के उद्देश्य तथा परिणाम में अन्तर होता है।
2. कर्म का परिणाम व्यक्ति के वश में नहीं होता है।
3. नैतिक निर्णयों का विषय 'हेतु' है।
4. नैतिक निर्णयों का विषय अभिप्राय है।
5. नैतिक निर्णय का विषय चरित्र है।
किसी कार्य को करने के लिए कर्म के साध्य तथा साधन के विषय में विचार किया जाता है। नीतिशास्त्र में साध्य तथा साधन के प्रश्न को महत्वपूर्ण माना जाता है। एक मत के अनुसार, "साध्य साधन के औचित्य को ठहराता है।'
साध्य साधन को प्रभावित करता है। इस दृष्टिकोण के समर्थकों के अनुसार, यदि साध्य अच्छा है तो साधन के विषय में विचार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। साध्य को महत्व देने वालों में कार्ल मार्क्स का नाम उल्लेखनीय है। विद्वानों के अनुसार, यदि साध्य अच्छा है तो साधन स्वयं अच्छा हो जाता है।
साधन साध्य को प्रभावित करता है। इस दृष्टिकोण के समर्थकों के अनुसार, साधन के आधार पर ही साध्य का मूल्यांकन करना चाहिए अर्थात् "साधन ही साध्य को प्रमाणित करता है (Means justifies the end)। ' इस मत को समर्थन देने वालों में गाँधी व अरविन्द का नाम प्रमुख है। इन्होंने अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज्य' में इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "साधन बीज है और साध्य वृक्ष, इसलिए जो सम्बन्ध बीज और वृक्ष में है वही सम्बन्ध साधन और साध्य के बीच में है।"
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि किसी भी नैतिक निर्णय के लिए दोनों पक्ष महत्वपूर्ण हैं। अतः साधनों एवं साध्य का प्रयोग करते समय सावधानी आवश्यक है।
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